“दमन तक्षकों का : जीवनी कुणाल की” पुस्तक

पुलिस में बहुत सारे ईमानदार पदाधिकारी हुए हैं। गुजरात में मैंने मन मोहन सिंह, पी.एन. रायटर और पी.एम. पन्त जैसे ईमानदार पदाधिकारियों के अधीन काम किया था। बिहार में भी रणधीर वर्मा और देवकी नन्दन गौतम जैसे अनेक ईमानदार पुलिस पदाधिकारी हुए हैं। मैं सभी ज्ञात, अज्ञात पुलिस अधिकारियों एवं सिपाहियों के प्रति भी असीम श्रद्धाभाव रखता हूँ। किन्तु उन भ्रष्ट अधिकारियों की जमात पर जिससे पुलिस विभाग को बदनामी मिलती है मैं सदैव प्रहार करता रहा हूँ। इस पुस्तक से कुछ बानगी नीचे दी जा रही है। जब मैं 1975 ई. में गुजरात के आणन्द का ए.एस.पी. था, तब पहले केस में ही बगल के अनुमण्डल नडियाद के डी.एस.पी. देसाई साहब कुछ कुबेरों को बचाने के लिए मोटी रकम लेकर आये थे। नीचे की वार्ता उसी सन्दर्भ में है-
कुणाल- “हत्या के चार फरार गुनहगार आप एक पुलिस पदाधिकारी से-मिले!”
देसाई- “अरे, इसमें आपको आश्चर्य क्यों हो रहा है? पुलिस अफसर तो तोहमत से ओत-प्रोत धनवन्त जनों से प्राप्त दौलत की बदौलत ही शानो-शौकत से रहता है।”
कुणाल- “क्या पगार परिवार को पालने के लिए पर्याप्त नहीं?
देसाई- “पगार तो सरकार को दिखाने के लिए है। परिवार का दारोमदार तो थानेदार बन्धुओं पर रहता है; सारे व्यय-व्यापार का जुगाड़ भी वही करते हैं।
वेतन तो सूखा साग है और ऊपरी कमाई मलाई है, असली मलाई।“
”कुणाल- “मलाई से मौत की मिताई है और साग से सेहत की चिकनाई। देसाई भाई! भलाई इसी में है कि इस मलाई की बुराई से बचा जाये, नहीं तो कानून की कड़ाई होने पर कहना कठिन है कि यह कब किसकी कलाई में कष्टदायी कंगन पहनवा कर जीवन भर जेल का जमाई बनवा दे। आप यह शाश्वत सत्य समझ लें-
ईमानदारी में जो बरकत है, वह ताजो-तख्त में भी नहीं।”
गुजरात में मन मोहन सिंह डी-जी-पी- थे। वे ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। जब मैं 1988 में अध्ययन-अवकाश पर आ रहा था, तब उन्होंने उस समय गुजरात में जो भ्रष्टाचार था उसपर बहुत अच्छा उपदेश दिया था, उसका बहुत-छोटा अंश यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ-
“मन मोहन सिंह- “अब तक मैंने व्यक्तिगत भ्रष्टाचार की बात की। अब विभाग-गत भ्र्रष्टाचार को उजागर करता हूँ। पुलिस में विभागीय भ्रष्टाचार में होमगार्ड सिरमौर है। कुछेक अपवादों को छोड़कर नीचे से लेकर ऊपर तक सब इसमें सराबोर हैं। कमीशन के बिना यहाँ सब शून्य है। ड्यूटी लेनी हो तो कमीशन, हाजिरी बनवानी हो तो कमीशन, भुगतान पाना हो तो कमीशन। घर पर रहकर भी ड्यूटी दिखानी हो तो कमीशन। पुलिस के अन्य महकमों में काम भी करना पड़ता है, तब अर्थागम होता है। यहाँ तो घर बैठे भी लक्ष्मी जी आ जाती हैं- ‘कमीशन दो (या देव)’ की कृपा से। सबका रेट तय है, सेट हो गया तो जेट की गति से सफलता मिल जायेगी, नहीं तो वेट करते-करते यम के गेट तक पहुँच कर उनको भेंट चढ़ जाओगे।
अब मैं पुलिस की एक पुराकालीन कहानी सुनाता हूँ। ब्रह्माजी ने जब पुलिसकर्मियों की सृष्टि की तब उन सबने मिलकर दस्यु-रूपी दैत्यों को ठोक-ठाक कर यम लोक पहुँचाया जिसके कारण सर्वत्र शान्ति स्थापित हो गयी, तब ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर घोषणा की- फ्तुम लोगों के काम और मेहनत से मैं बहुत प्रसन्न हूँ; अतः मैं थाना रूपी ऐसा खजाना देता हूँ जिसमें धनागम की कभी कमी नहीं रहेगी और शक्ति की कोई सीमा नहीं होगी। समझ लो, जिसको थाना-रूपी नजराना मिल गया, उसको सातवें आसमान का परवाना प्राप्त हो गया।
”इस तरह की रोचक वार्ताओं की भरमार है इस पुस्तक में, जो अन्यत्र नहीं मिलेगी।
DAMAN TAKSHAKON KA (JIWANI KUNAL KI)
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